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Wednesday 26 July 2017

श्री नृसिंह प्राकट्योत्सव

श्री गुरु कृपा,जय माई की :-
आज दिनांक 09/05/2017 को श्री नरसिँह जयंती उत्सव की आप सभी को मंगल कामनाएं।
""श्री नृसिंह प्राकट्योत्सव""
श्री नृसिंह प्राकट्योत्सव

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है. भगवान श्री नृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख देवता हैं, पौराणिक मान्यता एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था.
हिन्दू पंचांग के अनुसार नरसिंह जयंती का व्रत वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है. पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी पावन दिवस को भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में अवतार लिया तथा दैत्यों का अंत कर धर्म कि रक्षा की. अत: इस कारणवश यह दिन भगवान नृसिंह के जयंती रूप में बड़े ही धूमधाम और हर्सोल्लास के साथ संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है।
नरसिंह जयंती कथा :-
नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है. नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था. धर्म ग्रंथों में भगवान के इस अवतरण के बारे विस्तार पूर्वक विवरण प्राप्त होता है जो इस प्रकार है- प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे उनकी पत्नी का नाम दिति था. उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकशिपु था.
हिरण्याक्ष को भगवान श्री विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वाराह रूप धरकर मार दिया था. अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया. सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया, उसकी तपस्या से प्रसन्न हो ब्रह्माजी ने उसे 'अजेय' होने का वरदान दिया. वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, लोकपालों को मार भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया.
देवता निरूपाय हो गए थे वह असुर को किसी प्रकार वे पराजित नहीं कर सकते थे अहंकार से युक्त वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा. इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया एक राक्षस कुल में जन्म लेने पर भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का भक्त था तथा अपने पिता के अत्याचारों का विरोध करता था.
भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए, नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ तब उसने प्रह्लाद को मारने के षड्यंत्र रचे मगर वह सभी में असफल रहा. भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था.
इस बातों से क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने उसे अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया. होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती परंतु जब प्रल्हाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई किंतु प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ.
इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु को पूजने लगी, तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता, तेरा भगवान कहाँ है? इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं. क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि 'क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है? प्रह्लाद ने हाँ, में उत्तर दिया.
यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया तभी खंभे को चीरकर श्री नृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया. श्री नृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा अत: इस कारण से दिन को नृसिंह जयंती-उत्सव के रूप में मनाया जाता है.r
"भगवान नृसिंह जयंती पूजा"
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नृसिंह जयंती के दिन व्रत-उपवास एवं पुजा अर्चना कि जाती है इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए तथा भगवान नृसिंह की विधी विधान के साथ पूजा अर्चना करें. भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए तत्पश्चात वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिभगवान नरसिंह जी की पूजा के लिए फल, पुष्प, पंचमेवा, कुमकुम केसर, नारियल, अक्षत व पीताम्बर रखें. गंगाजल, काले तिल, पञ्च गव्य, व हवन सामग्री का पूजन में उपयोग करें.
भगवान नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नरसिंह गायत्री मंत्र का जाप करें. पूजा पश्चात एकांत में कुश के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से इस नृसिंह भगवान जी के मंत्र का जप करना चाहिए. इस दिन व्रती को सामर्थ्य अनुसार तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए. इस व्रत करने वाला व्यक्ति लौकिक दुःखों से मुक्त हो जाता है भगवान नृसिंह अपने भक्त की रक्षा करते हैं व उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
"नरसिंह मंत्र"
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ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् I
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम् II
ॐ नृम नृम नृम नर सिंहाय नमः ।
इन मंत्रों का जाप करने से समस्त दुखों का निवारण होता है तथा भगवान नृसिंह की कृपा प्राप्त होती है.r
आज कै दिन प्रभुने नृंसिंहरुप धारण कर प्रहलादजी की रक्षा के लिए और प्रहलादजी के वचन को सत्य करने प्रकटे है।
प्रभु तो सारी सृष्टि को संकल्पमात्र सै ही प्रकट कर सकते है और संकल्पमात्र से लीन भी कर देते है।
पर भक्त की बात रखने प्रभु प्रकटे है वरना हिरण्यकशिपु कौ मारना ही प्रयोजन नही था।
प्रभु तो अक्षर ब्रहम आध्यात्मिक स्वरूप से खंभे में बिराजमान है।हिरण्यकशिपू यह बात मान नही रहा था की खभेमें भी भगवान हो सकते है।पर प्रहलादजी का यह अटूट विश्वास की प्रभु सर्वत्र है।
यहॉ यही बात भी आ रही के परम तत्व सर्व व्याप्त है पर जिनकी द्रष्टिमें भेद है और अविद्या से ग्रस्त है उन्हें यह बात झूठ लगती है।हिरण्यकशिपु अपने अहंकार और मदमें चूर था।पर प्रहलादजी की निर्मल भक्ति से उन्हे सर्वत्र प्रभु के दर्शन होतै थे।
और भक्त प्रहलाद के इस विश्वास को प्रभुने खंभेमे से प्रकट हो कर अक्षरब्रह्मात्मकता में पुरुषोत्तमता प्रकट कर आधिदैविक नृसिंहजी का रुप धारण कर प्रहलाद के वचन की रक्षा की।।
अपनो जन प्रहलाद उबार्यो।
यह व्रत माधो प्रथम लीयो
जो मेरे भक्तन को दुखवे ताको फारु नखन हीयो।
सौ यह उत्सव भी पुष्टिमार्ग के लिए खास महत्वपूर्ण है।पुष्टिमार्गमें प्रभु भक्तो के लिए स्वयं त्वरीतता से पधारते है ।
आज ही के दिन श्रीजी सतघरामें से फाग खेल के पुन: श्रीगिरिराजजी में मंदिर में बिराजे सो पधारने में अवेर होने से राजभोग और शयनभोग संग अरोगे थे।और आज भी यही क्रम नाथद्वारमें है।
आज प्रभु को विशेष शीतल सामग्री
पना दहीभात अडभंगा आदि भोगमें आती है।
आज शयनमें फूलमंडली का भी क्रम है।
:प्रभुने यहां विरूद्धधर्माश्रय का गुण प्रकट किया।।

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